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याभि॒: सिन्धुं॒ मधु॑मन्त॒मस॑श्चतं॒ वसि॑ष्ठं॒ याभि॑रजरा॒वजि॑न्वतम्। याभि॒: कुत्सं॑ श्रु॒तर्यं॒ नर्य॒माव॑तं॒ ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yābhiḥ sindhum madhumantam asaścataṁ vasiṣṭhaṁ yābhir ajarāv ajinvatam | yābhiḥ kutsaṁ śrutaryaṁ naryam āvataṁ tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याभिः॑। सिन्धु॑म्। मधु॑ऽमन्तम्। अस॑श्चतम्। वसि॑ष्ठम्। याभिः॑। अ॒ज॒रौ॒। अजि॑न्वतम्। याभिः॑। कुत्स॑म्। श्रु॒तर्य॑म्। नर्य॑म्। आव॑तम्। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.९

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:112» मन्त्र:9 | अष्टक:1» अध्याय:7» वर्ग:34» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:16» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वे दोनों क्या करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अश्विना) विद्या पढ़ाने और उपदेश करनेवाले (अजरौ) जरावस्थारहित विद्वानो ! तुम (याभिः) जिन (ऊतिभिः) रक्षाओं से (मधुमन्तम्) मधुर गुणयुक्त (सिन्धुम्) समुद्र को (असश्चतम्) जानो वा (याभिः) जिन रक्षाओं से (वसिष्ठम्) जो अत्यन्त धर्मादि कर्मों में वसनेवाला उसकी (अजिन्वतम्) प्रसन्नता करो, वा (याभिः) जिनसे (कुत्सम्) वज्र लिये हुए (श्रुतर्यम्) श्रवण से अति श्रेष्ठ (नर्यम्) मनुष्यों में अत्युत्तम पुरुष को (आवतम्) रक्षा करो, (ताभिरु) उन्हीं रक्षाओं के साथ हमारी रक्षा के लिये (स्वागतम्) अच्छे प्रकार आया कीजिये ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि यज्ञविधि से सब पदार्थों को अच्छे प्रकार शोधन कर सबका सेवन और रोगों का निवारण करके सदैव सुखी रहें ॥ ९ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तौ किं कुर्य्यातामित्याह ।

अन्वय:

हे अश्विनाजरौ युवां याभिरूतिभिर्मधुमन्तं सिन्धुमसश्चतं याभिर्वसिष्ठमजिन्वतं याभिः श्रुतर्य्यं नर्य्यं चावतं ताभिरू ऊतिभिरस्माकं रक्षायै स्वागतम् अस्मान् प्राप्नुतम् ॥ ९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (याभिः) (सिन्धुम्) समुद्रम् (मधुमन्तम्) माधुर्यगुणोपेतम् (असश्चतम्) जानीतम्। अत्र सर्वत्र लोडर्थे लङ्। सश्चतीति गतिकर्मा। निघं० २। १४। (वसिष्ठम्) यो वसति धर्मादिकर्मसु सोऽतिशयितस्तम् (याभिः) (अजरौ) जरारहितौ। (अजिन्वतम्) प्रीणीतम् (याभिः) (कुत्सम्) वज्रायुधयुक्तम्। कुत्स इति वज्रना०। निघं० २। २०। (श्रुतर्यम्) श्रुतानि अर्य्याणि विज्ञानशास्त्राणि येन तम्। अत्र शकन्ध्वादिना ह्यकारलोपः। (नर्यम्) नृषु नायकेषु साधुम् (आवतम्) रक्षतम्। अग्रे पूर्ववदर्थो वेद्यः ॥ ९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यज्ञविधिना सर्वान् पदार्थान् संशोध्य सर्वान् सेवित्वा रोगान् निवार्य सदा सुखयितव्यम् ॥ ९ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी यज्ञविधीने सर्व पदार्थांना चांगल्या प्रकारे संस्कारित करून सर्वांचा अंगीकार करावा व रोगांचे निवारण करून सदैव सुखी व्हावे. ॥ ९ ॥